सिद्धार्थ

क्या मेले के गुब्बारे कभी ख़ामोशी की तलाश में भटकते होंगे? क्या पूनम का चान्द कभी अमावस की आस रखता होगा? शहर की बसों ने कभी ढूँढी होंग किसी गाँव का रस्ता? क्या सागर की मछलियों ने एक दिन किसी वीरान कुएँ का ख़्वाब देखा होगा?

मैंने न तलाश की न ख़्वाब देखे हैं,  इन सियाही की लकीरों में मैं कबसे गुमशुदा हूँ|

पीपल वृक्ष —
एक त्रिकोण पत्ते
में समक्ष भू

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